नरम दल का नेतृत्व मोतीलाल नेहरू करते थे और गरम दल का नेतृत्व लोकमान्य तिलक करते थे गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक एक क्रांतिकारी की तरह थी जो हर जगह वंदे मातरम गाया करते थे वहीं दूसरी ओर नवरंग दल के नेता मोतीलाल नेहरू थे जो अंग्रेजों का समर्थन करते थे
गरम दल के लोग अंग्रेजों के साथ रहना उन को सुनना उनकी बैठकों में शामिल होना हर समय अंग्रेजों से समझौते में रहते थे जबकि गरम दल के लोग अंग्रेजों को पसंद भी नहीं करते थे
नरम दल वाले अंग्रेजों के साथ थे इसलिए उन्होंने मुस्लिम के मन में यह बात डाल दी थी कि उन्हें वंदे मातरम नहीं जाना चाहिए क्योंकि इसमें बुतपरस्ती है जिसमें कारण मुस्लिम ने वंदे मातरम गाना छोड़ दिया था उस दौरान मुस्लिम भी लिख भी बन गई थी जिसके प्रमुख मुहम्मद अली जिन्नाह थे.
गरम दल और नरम दल क्या है
गरम दल का नाम नरम दल पड़ा तो वही दूसरे दल गंगाधर तिलक के बनाया जिससे गरम दल नाम दिया गया गंगाधर तिलक का मानना था कि यदि अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाएं तो यह भारत के साथ एक धोखा होगा। यह वंदे मातरम का नारा लगाते थे जो मोतीलाल नेहरू को पसंद नहीं था क्योंकि इससे भारतीयों के मन में उनके देश के लिए प्रेम जाग सकता है जबकि मोतीलाल नेहरू रूपबस अंग्रेजों के आगे पीछे घूमने और उनकी चापलूसी करने वाले में से थे।
दोनों ही कांग्रेस के विभाजन से बने दल के जिसमें एक का नाम नरम दल और दूसरे का नाम गरम दल था।
गरम दल के नेता कौन कौन से हैं?
गरम दल के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, लाल लाजपत राय शामिल थे, इन सभी ने मिलकर क्रांतिकारी हवा चलाई और स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोगों में जोश भरा. गरम दल के नेता सरकार के कार्यों और उनके द्वारा दिए गए अधिकारों से संतुष्ट नहीं थे।
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